- राष्ट्रीय विचार मंच ने किया आयोजन
- रायपुर पश्चिम विधानसभा विधायक राजेश मूणत ने गोष्ठी का किया समर्थन
- इस मंच द्वारा वन नेशन, वन इलेक्शन पर फेलोशिप कराने की हुई घोषणा
रायपुर । राष्ट्रीय विचार मंच के तत्वावधान में रायपुर पश्चिम विधानसभा के अंतर्गत शहर के मैक कॉलेज के सभागार में “वन नेशन, वन इलेक्शन विषय” पर गोष्ठी की गई। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राजनांदगांव सांसद संतोष पांडेय ने कहा कि यह एक साहसिक कदम है, जिसे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करने का फैसला लिया है। उन्होंने बताया कि अलग अलग चुनाव कराने से सरकार पर खर्च का बोझ बढ़ता है।
उन्होंने बताया कि बराबर चुनाव होने और आचारसंहिता लगने से महज 3 साल ही विकास कार्य के लिए बच जाता है। भारत को वैभवशाली बनाने वाली बाधक चीजों में बराबर चुनाव का होना है। अतः आवश्यक है कि चुनाव से होनेवाले खर्च को कम करने हेतु वन नेशन वन इलेक्शन को लागू किया जाय।
इस गोष्ठी में विधि से जुड़े मामले को सामान्य भाषा में समझाते हुए विधि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ भूपेंद्र करवंडे ने गहरी जानकारी देते हुए कहा कि यह कोई नया विषय नहीं है वर्ष 1983 में पहली बार निर्वाचन आयोग ने आरंभिक वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव का सुझाव दिया था। उन्होंने संवैधानिक सुधार के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि अनुच्छेद 82 – क, अनुच्छेद 83 और 172 में मामूली सुधार करके एक साथ चुनाव कराया जा सकता है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन,बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलीपींस में एक साथ चुनाव के तरीके के बारे में बताते हुए इसे भारत में लागू कराने की वकालत की।
इस मौके पर रायपुर पश्चिम विधायक और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने जो निर्णय लिया है, उसे फलीभूत करने के लिए समाज से अपार समर्थन मांगा गया है और हमारे पास सैकड़ों समाज प्रमुख समर्थन पत्र के साथ आएं है। महापौर मीनल चौबे ने कहा कि सामान्य सभा में इसे लागू कराने और अन्य गतिविधि करने की बात की। राष्ट्रीय विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक गोपाल टावरी ने कहा कि हमारा मंच इस गोष्ठी को मोहल्लों तक ले जाएगी । उन्होंने इस विषय पर फेलोशिप योजना की घोषणा की।
इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलन और वंदे मातरम गान से किया गया।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय विचार मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक (उत्तर भारत, पूर्वोत्तर भारत, और उत्तर पूर्वी प्रांत) ने किया।
इस मौके पर उक्त अतिथियों के अतिरिक्त शिल्प कला मंडल अध्यक्ष प्रफुल्ल विश्वकर्मा, क्रांतिरथ छत्तीसगढ़ के संपादक नारायण भूषणिया, भाजपा जिला अध्यक्ष रमेश ठाकुर, महामंत्री सत्यम दुवा , तात्यापारा मंडल अध्यक्ष चैतन्य टावरी, पार्षद दीपक जायसवाल, सहित सैकड़ों की संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
इन बिंदुओं पर भी वक्ताओं ने प्रकाश डाला –
- क्रम टूटा, खर्च बढ़ा – 1952 से 1967 तक हुआ था एक साथ चुनाव हुआ था। इसका क्रम टूटा तो देश पर बोझ बढ़ा ।
2.बाधित विकास, बढ़ती उदासीनता* : साल – दर – साल चुनाव होने और आचारसंहिता के कारण विकास के कार्य ठप हो जाते हैं और इससे मतदाता परेशान होकर मतदान से उदासीन होते जा रहे हैं। - विपक्ष के बेतुके तर्क : विपक्ष ने एक नया विमर्श खड़ा किया है, जैसे – संघीय ढांचा का नुकसान, संविधान खतरे में, छोटे राजनैतिक दलों का अस्तित्वभमेन आयेगा खतरा, राज्य सरकारों की शक्तियां कम होंगी, बराबर चुनाव होने से कला धन बाहर आता है और रोजगार मिलता है आदि, जो सरदार राजनैतिक है और कुतर्क का खजाना है।
- संविधान में एक साथ चुनाव करने का नहीं था विधान
- क्या यह अचानक आया विषय : नहीं ! वर्ष 1983 में पहली बार निर्वाचन आयोग ने आरंभिक वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव का सुझाव दिया था। आयोग ने विस्तार से इसके नुकसान को बताया था।
- देश में है 80 प्रतिशत समर्थन
- कई देशों का हुआ है अध्ययन – दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलीपींस में होते है एक साथ चुनाव।
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